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कुरान, पैंगबर… पाकिस्‍तानी सेना प्रमुख मुनीर के द्विराष्ट्र सिद्धांत को इस्लाम के व‍िशेषज्ञों ने किया खारिज, जानें क्या कहा – asim munir kashmir and muslims statement expert comment in islam and myth of two nation theory


इस्लामाबाद: पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के हालिया बयान चर्चा में हैं। पहलगाम आतंकी हमले से पहले और इसके बाद, कई मौकों पर मुनीर ने कहा है कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग कौम हैं और दोनों एक साथ नहीं रह सकते। मुनीर के दो-राष्ट्र सिद्धांत पर दिए गए बयान भारत और पाकिस्तान में चर्चा बटोर रहे हैं। हालांकि असीम के हिंदू और मुसलमान के अलग होने और इनके साथ ना रहने की बात को एक्सपर्ट ने खारिज कर दिया है। इस्लाम के जानकारों का कहना है कि असीम के बयान कुरान की शिक्षा के हिसाब से ठीक नहीं बैठते हैं।

टीओई के स्पीकिंग ट्री में छपे लेख में फरीदा खानम ने द्विराष्ट्र सिद्धांत को इस्लाम के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि कुरान हो, पैगंबर मोहम्मद की शिक्षा हो या फिर इस्लामी इतिहास, कहीं भी इस तरह के विचार का समर्थन नहीं किया गया है। कुरान ने भाईचारे और एकता पर जोर दिया गया है ना कि दो धर्मों के अलग रहने की बात कही है।

‘पैगंबर ने सबको अपना कहा’

फरीदा खानम कहती हैं, ‘असीम मुनीर ने मुसलमान और हिंदुओं को दो अलग-अलग राष्ट्र बताते हुए कहा है कि दोनों के रीति-रिवाज, परंपराएं और नजरिया अलग है। मुनीर जिस सिद्धांत की बात कर रहे है, उसका कोई आधार इस्लामी शिक्षाओं में नहीं है। मोहम्मद और दूसरे पैगंबरों ने गैर-मुस्लिमों के लिए ‘या कौमी’ कहकर संबोधन किया है। इसका मतलब है ‘मेरे लोग’। यह समावेशी भावना को दर्शाता है और दो-राष्ट्र की विभाजनकारी विचारधारा के खिलाफ है।’
इस्लामी इतिहास भी इस बात का खंडन करता है कि धर्म के आधार पर अलग राष्ट्रीय पहचान होनी चाहिए। इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद ने मक्का में 53 साल गैर-मुस्लिमों के साथ बिताए। उन्होंने कभी धार्मिक अलगाव की वकालत नहीं की। जब कुछ मुसलमान ईसाई देश अबीसीनिया में चले गए तो भी वे स्थानीय समाज के साथ बने रहे। उन्होंने कभी भी किसी विशेष धार्मिक पहचान पर जोर नहीं दिया। यहां तक कि यहूदी जनजातियों के साथ भी उनके रिश्ते मधुर रहे।

‘मक्का में गैर मुस्लिमों की बड़ी तादाद थी’

सेंटर फॉर पीस एंड स्पिरिचुअलिटी इंटरनेशनल की चेयरपर्सन फरीदा खानम कहती हैं कि पैंगबर के वक्त में मक्का में गैर-मुसलमानों का बहुमत था। शुरुआती इस्लामी इतिहास में मुसलमाने के लिए अलग राष्ट्र का कोई विचार नहीं मिलता है। यह विचार 19वीं और 20वीं शताब्दी में राजनीतिक कारणों से पेश किया गया और इसे गलत तरीके से इस्लाम से जोड़ दिया गया।
फरीदा कहती हैं कि कुरान भी राष्ट्रीयता की इस्लामी अवधारणा को नहीं मानता है। कुरान में धर्म से राष्ट्रीयता को परिभाषित नहीं किया गया है, बल्कि यह मातृभूमि से तय होता है। कुरान में मिल्लत शब्द धार्मिक संबद्धता को संदर्भित करता है, जबकि कौमियत शब्द उस बंधन को दिखाता है जो मातृभूमि के माध्यम से बनता है।

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